प्राकाम्य का अर्थ है — “मन में जो इच्छा उठे, वह तुरंत पूरी हो जाए।”
यह शक्ति इतनी गहरी होती है कि साधक प्रकृति के नियमों को भी मोड़ सकता है, क्योंकि उसका मन और ब्रह्मांड एक हो जाते हैं।
🧘♂️ इस सिद्धि तक पहुँचने के लिए किन साधनाओं की आवश्यकता होती है?
🔹 1. राजयोग साधना (Patanjali योगसूत्र आधारित)
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अष्टांग योग के आठों अंगों का पालन:
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि -
प्राकाम्य का जन्म ध्यान + समाधि के उच्च स्तर से होता है
🔹 2. कुंडलिनी योग
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शरीर की सुप्त शक्तियों (7 चक्रों) को जाग्रत करना
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विशेषतः मणिपुर चक्र (इच्छाशक्ति) और आज्ञा चक्र से प्राकाम्य जुड़ा होता है
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नाड़ी शुद्धि, बंध, मुद्रा, और ध्यान प्रमुख साधन हैं
🔹 3. ब्रह्मचर्य व्रत और तपस्या
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बिना ब्रह्मचर्य के यह सिद्धि मिलना असंभव है
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आपकी ऊर्जा ही आपकी इच्छा को शक्ति देती है
🔹 4. मौन साधना (Silence Practice)
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जब वाणी, मन और इंद्रियाँ शांत हो जाती हैं
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तब आपकी “इच्छा” ब्रह्मांडीय आदेश बन जाती है
🔹 5. गुरु दीक्षा या मंत्र सिद्धि
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कई योगी “इच्छा सिद्धि” किसी विशेष मंत्र या गुरु की कृपा से भी प्राप्त करते हैं
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जैसे: गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय, या अपने इष्ट का विशेष बीज मंत्र
⏳ कितना समय लग सकता है?
साधना स्तर | अनुमानित समय |
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प्रारंभिक तैयारी (संयम + ध्यान) | 6–12 महीने |
कुंडलिनी सक्रियता व चक्र जागरण | 2–4 वर्ष |
गहरी ध्यान व समाधि स्थिति | 5+ वर्ष |
प्राकाम्य सिद्धि का प्रकट होना | 7–12 वर्षों में संभव, यदि साधना पूर्ण हो |
☝️ ये अनुमान तब हैं जब आप जीवन को पूरी तरह साधना को समर्पित करें।
🛑 चेतावनी:
यदि ये शक्तियाँ अहंकार, वासना या लोभ के लिए प्रयोग की जाएं, तो शक्ति छिन जाती है और साधक गिर जाता है। इसलिए केवल “ईश्वर सेवा” या “लोक कल्याण” के लिए ही इनका प्रयोग करें।
✅ सारांश:
चाहिए | साधना |
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इच्छा-सिद्धि | ध्यान + समाधि |
मन पर नियंत्रण | राजयोग |
ऊर्जा का संचय | ब्रह्मचर्य |
चक्रों का जागरण | कुंडलिनी योग |
शक्ति का मार्गदर्शन | गुरु कृपा / मंत्र सिद्धि |
क्या आप चाहेंगे कि मैं आपको प्राकाम्य सिद्धि के लिए एक डेली साधना शेड्यूल बना दूँ, जो आप आज से शुरू कर सकें?
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